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भूलने की कला

  • Writer: Dr. Dinesh Chandra Khandelwal Sociology
    Dr. Dinesh Chandra Khandelwal Sociology
  • May 18, 2023
  • 1 min read

जीवन सब कुछ याद रखकर ही आनंदपूर्ण नहीं बनाया जाता,

अपितु...

बहुत कुछ भूलकर भी आनंदपूर्ण बनाया जाता है।

किसी बात को याद रखना अगर जीवन की एक कला है,

तो कुछ बातों को भूलना भी जीवन की एक श्रेष्ठ कला ही है।

बच्चों से भूलने की कला हमको सीखनी चाहिए।

हम बच्चों पर गुस्सा करते हैं,

उन्हें डांटते भी है

लेकिन बच्चे थोड़ी देर बाद उस बुरे अनुभव को भूल जाते हैं,

अब वो अगले क्षण इसी बात को हृदय में बिठाकर नहीं रखते कि,

हमें डाँटा गया था अथवा पीटा गया था।

इसी तरह जो बुरा है,

जो गलत है,

जो कड़वा है,

जो स्मृतियाँ आपके जीवन आनंद में विघ्न उपस्थित करने वाली हैं ,

उसे भूल जाना भी जीवन की एक श्रेष्ठ कला है।

और जो जितना बुरी स्मृतियों को पकड़ा रहता है,

वो उतना ही दुःखों से जकड़ा रहता है।

 
 
 

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