पद और सत्ता होते हुए व्यक्ति, परिवार और समाज का हित कीजिए।
- Dr. Dinesh Chandra Khandelwal Sociology
- May 7, 2023
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रिटायरमेंट के बाद का दर्द
शहर पटना में बसे कंकड़बाग में एक सेवानिवृत्त आईएएस अफसर रहने के लिए आए। वह हैरान-परेशान से रोज शाम को पास के पार्क में टहलते हुए अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे।
एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार उनके पास बैठने लगे लेकिन उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं भोपाल में इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था कि पूछो मत, यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं। मुझे तो दिल्ली में बसना चाहिए था। वह बुजुर्ग प्रतिदिन शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे। परेशान होकर एक दिन उन्होंने सेवानिवृत्त आईएएस अफसर को समझाया।
आपने कभी फ्यूज बल्ब देखे हैं? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है कि बल्ब किस कम्पनी का बना हुआ था या कितने वाट का था। उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी? बल्ब के फ्यूज़ होने के बाद इनमें से कोई भी बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती है। लोग ऐसे बल्ब को कबाड़ में डाल देते हैं कि नहीं।
जब उन रिटायर्ड आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति में सिर हिलाया तो बुजुर्ग फिर बोले - रिटायरमेंट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो जाती है। हम कहां काम करते थे, कितने बड़े/छोटे पद पर थे, हमारा क्या रुतबा था, यह सब कुछ भी कोई मायने नहीं रखता।
मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वो जो सामने शर्मा जी बैठे हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सामने से आ रहे जोशी साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो पाठक जी इसरो में चीफ थे। यह बात भी उन्होंने किसी को नहीं बताई है, मुझे भी नहीं।
मैं जानता हूं सारे फ्यूज़ बल्ब करीब - करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो या 50 या 100 वाट हो। कोई रोशनी नहीं तो कोई उपयोगिता नहीं। उगते सूर्य को जल चढ़ा कर सभी पूजा करते हैं, पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं करता।
कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते हैं कि रिटायरमेंट के बाद भी उनसे अपने अच्छे दिन भुलाए नहीं भूलते।
माना कि आप बहुत बड़े आफिसर थे, बहुत काबिल भी थे, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती थी पर अब क्या? अब यह बात मायने नहीं रखती है बल्कि मायने रखती है कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे थे। आपने कितनी जिन्दगी को छुआ। आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी। समाज को क्या दिया। लोगों की मदद की या सिर्फ घमंड में ही रहे...
पद पर रहते हुए कभी घमंड आये तो बस याद कर लीजिए कि एक दिन सबको फ्यूज होना है।
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