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धूमने के लिये भारत स्वर्ग पर औरतों के लिये नरक

  • Writer: Dr. Dinesh Chandra Khandelwal Sociology
    Dr. Dinesh Chandra Khandelwal Sociology
  • May 17, 2023
  • 1 min read

भारत में अध्ययन यात्रा के तीन महीने गुजारकर अमेरिका लौटी शिकागो विश्वविद्यालय की छात्रा मिशेला क्रास का यह अनुभव है।

हम धर्मपरायण देश के नागरिक है। जन्म से मृत्यु तक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धार्मिक एवं सांस्कृतिक निर्देश हमारा मार्गदर्शन करते है। जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के लिये अर्थ और काम की संतुलित एवं सीमित पूर्ति धार्मिक विधानां के अनुसार की जा सकती है। हमारे देश में महिलाओं को देवी का स्थान दिया गया है परन्तु बलात्कार, व्याभिचार एवं महिलाओं के प्रति अपराघ लगातार बढ़ते जा रहे है।

हमारे देश के नागरिकां को क्या हो गया है। हमारे धार्मिक एवं सांस्कृतिक मूल्य क्या केवल दिखावा है। आखिर कैसे महिलाओं के प्रति लगातार बढ़ते जा रहे अपराघों को रोका जा सकता है।

मेरी नजर में तो त्वरित न्याय एवं अपराधी को कठोर दंड ही एकमात्र उपाय है। त्वरित न्याय के लिये निर्णय की समय सीमा होनी चाहिये। चाहे इसके लिये हमें न्याय व्यवस्था के सुधार पर कितनी ही राशि क्यों न खर्च करनी पडे़। यह कार्य पहली प्राथमिकता से किया जाना चाहिये। इसके लिये हमारे पास धन की कमी नहीं है। राजनैतिक पार्टिया सत्ता प्राप्ति तथा सत्ता में वापसी के लिये लोक लुभावन एवं देश को गर्त में डालने वाली योजनाओं पर खरबों रुपया खर्च कर रही है।

चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के क्रांतिकारी निर्णयों को सभी राजनैतिक पार्टिया अपने हित में बदल रहीं है।

अब हमारे जागने का समय है।

कब हम विदेशों में भी कह सकेगें की हमें भारतीय होने पर गर्व है एवं विश्व हमारे इस गर्व को सहमति देगा तथा हम जैसा बनने का प्रयास करेगा।

 
 
 

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